Pitra tarpan: पूर्वजों के लिए क्यों जरूरी है पितृ तर्पण – कब और कैसे करे? जानें सही तरीका!

 

 

 

 

 

 

हिंदू धर्म में पितरों का विशेष महत्व है। वे हमारे पूर्वज हैं जिन्होंने हमें जीवन दिया, संस्कार दिए और हमारी वंश परंपरा को आगे बढ़ाया। शास्त्रों में कहा गया है – “पितृ देवो भव”, अर्थात पितरों को देवताओं के समान मानना चाहिए। जब पितरों की आत्मा संतुष्ट नहीं होती या उनका श्राद्ध व तर्पण विधिपूर्वक नहीं किया जाता, तो परिवार में पितृ दोष उत्पन्न होता है। इससे जीवन में रुकावटें, आर्थिक तंगी, संतान-सुख की कमी और वैवाहिक कलह जैसी समस्याएँ सामने आती हैं।

 

ऐसे में पितृ तर्पण एक महत्वपूर्ण उपाय है जो पितरों की आत्मा को तृप्त कर उनके आशीर्वाद की प्राप्ति कराता है। आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी पितृ तर्पण से जुड़ी बेहद अहम जानकारी लेकर प्रस्तुत है,आइए विस्तार से समझते हैं कि पितृ दोष क्या है, पितृ तर्पण का महत्व, इसकी विधि और पितृ पक्ष 2025 की तिथियाँ कौन सी हैं।

 

#पितृ दोष क्या है?

*पितृ दोष तब उत्पन्न होता है जब

*पूर्वजों की आत्मा अपूर्ण इच्छाओं के कारण अशांत रहती है।

*पितरों का श्राद्ध या तर्पण ठीक से न किया गया हो।

*परिवार में किसी ने पितरों का अपमान किया हो।

*जन्म कुंडली में सूर्य, चंद्रमा, राहु-केतु या शनि अशुभ स्थिति में हों।

*नवम भाव (भाग्य स्थान) पर अशुभ ग्रह का प्रभाव हो।

 

**पितृ दोष के लक्षण:

यदि जीवन में बार-बार परेशानियाँ आ रही हों तो इसके पीछे पितृ दोष हो सकता है। इसके मुख्य लक्षण हैं –

*विवाह में देरी या दाम्पत्य जीवन में कलह।

*संतान सुख की कमी या संतान का कष्ट में रहना।

*बार-बार आर्थिक तंगी।

*स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ।

*घर-परिवार में अशांति या दुर्घटनाएँ।

*स्वप्न में पितरों का बार-बार दिखना।

 

**पितृ तर्पण का महत्व:

 

#पितृ तर्पण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पितरों की आत्मा को शांति और कुल में समृद्धि का माध्यम है।

#तर्पण से पितरों की आत्मा तृप्त होती है।

#पूर्वज प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

#जीवन में बाधाएँ दूर होती हैं और समृद्धि आती है।

#कुल में संतान सुख और उन्नति होती है।

 

**पितृ तर्पण कब करें?

 

1. पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष): भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक का समय (इस वर्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर 2025)।

2. अमावस्या तिथि: हर अमावस्या पर भी तर्पण किया जा सकता है।

3. गंगा या पवित्र नदी के तट पर: यहाँ तर्पण करने से विशेष फल मिलता है।

4. ग्रहण काल में: सूर्य या चंद्र ग्रहण पर भी तर्पण श्रेष्ठ माना गया है।

 

#पितृ तर्पण की विधि:

1. तैयारी

प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।

दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें।

तांबे या पीतल के लोटे में शुद्ध जल, काला तिल, कुशा और पुष्प रखें।

 

2. संकल्प

दाहिने हाथ में जल, तिल और कुशा लेकर संकल्प करें –

“मैं अमुक गोत्र का अमुक व्यक्ति, अपने पितरों की तृप्ति हेतु यह तर्पण कर रहा हूँ।”

 

3. जल अर्पण (तर्पण)

 

जल में काला तिल और कुशा डालकर तीन बार पितरों का स्मरण करें।

मंत्र बोलें – “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” और जल अर्पण करें।

 

4. पिंडदान

जौ, चावल और तिल से बने पिंड तैयार करें।

इन्हें कुशा पर रखकर पितरों का आह्वान करें।

5. ब्राह्मण भोज और दान

ब्राह्मण को भोजन करवाकर वस्त्र और दक्षिणा दान करें।

साथ ही कौए, कुत्ते, गाय और जरूरतमंदों को अन्न दान करें।

 

#पितृ तर्पण के नियम:

*तर्पण हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें।

*उस दिन मांसाहार और तामसिक भोजन से बचें।

*घर में सात्विक भोजन ही पकाएं।

*पितरों की पूजा में दिखावा नहीं बल्कि श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण है।

 

#पितृ दोष निवारण के सरल उपाय:

 

*प्रतिदिन सुबह पितरों का स्मरण कर जल अर्पित करें।

*हर अमावस्या को दीपक जलाकर पितरों का ध्यान करें।

*गीता पाठ और विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।

*गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन व वस्त्र दान करें।

*पीपल या बरगद के नीचे दीपक जलाएं।

 

**पितृ पक्ष 2025 की तिथियाँ

 

*पितृ पक्ष 2025 प्रारंभ: 7 सितंबर 2025 (भाद्रपद पूर्णिमा)

*पितृ पक्ष 2025 समाप्त: 21 सितंबर 2025 (सर्वपितृ अमावस्या)

*तारीख (सितंबर 2025) तिथि श्राद्ध प्रकार

*7 – रविवार भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा पूर्णिमा श्राद्ध

*8 – सोमवार कृष्ण प्रतिपदा प्रतिपदा श्राद्ध

*9 – मंगलवार कृष्ण द्वितीया द्वितीया श्राद्ध

*10 – बुधवार कृष्ण तृतीया तृतीया श्राद्ध

*11 – गुरुवार कृष्ण चतुर्थी चतुर्थी श्राद्ध

*12 – शुक्रवार कृष्ण पंचमी पंचमी श्राद्ध

*13 – शनिवार कृष्ण षष्ठी/सप्तमी षष्ठी/सप्तमी श्राद्ध

*14 – रविवार कृष्ण अष्टमी अष्टमी श्राद्ध

*15 – सोमवार कृष्ण नवमी नवमी श्राद्ध

*16 – मंगलवार कृष्ण दशमी दशमी श्राद्ध

*17 – बुधवार कृष्ण एकादशी एकादशी श्राद्ध

*18 – गुरुवार कृष्ण द्वादशी द्वादशी श्राद्ध

*19 – शुक्रवार कृष्ण त्रयोदशी त्रयोदशी श्राद्ध

*20 – शनिवार कृष्ण चतुर्दशी चतुर्दशी श्राद्ध

*21 – रविवार कृष्ण अमावस्या सर्वपितृ अमावस्या (समापन)

 

*विशेष दिन:

पूर्णिमा श्राद्ध (7 सितंबर): पितृ पक्ष की शुरुआत, स्नान-दान विशेष फलदायी।

प्रतिपदा श्राद्ध (8 सितंबर): प्रतिपदा तिथि पर पितरों का श्राद्ध करने का महत्व।

*सर्वपितृ अमावस्या (21 सितंबर): यदि मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध करना श्रेष्ठ है।

 

पितृ दोष जीवन में अनेक कठिनाइयाँ ला सकता है, लेकिन पितृ तर्पण के माध्यम से इसे दूर किया जा सकता है। जब हम श्रद्धा और शुद्ध भाव से पितरों को तर्पण करते हैं, तो उनकी आत्मा तृप्त होती है और वे हमें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

 

इसलिए हर व्यक्ति को पितृ पक्ष में कम से कम एक बार पितृ तर्पण अवश्य करना चाहिए। यह केवल धार्मिक कर्तव्य ही नहीं बल्कि आत्मिक शांति और वंशजों की प्रगति का मार्ग भी है।

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